Wednesday 11 October 2017

म्युचुअल फंड की शब्दावली (Mutual Fund Terminology)

       प्यारे मित्रों मेरी कोशिश है कि देश में हर शख्स आर्थिक प्रक्रिया से जुड़े और वह खुद के विकास के साथ साथ देश का विकास भी तय करे. जैसा की मेरा यह ब्लॉग आप के लिए विभिन्न प्रकार की बेहतर आर्थिक जानकारियों से जुदा है इस लिए मैंने यह पाया कि हमारे अधिकांश मित्रों को मुचुअल फंड की शब्दावली में बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता है  तो मैंने मनीकंट्रोल.कॉम  के सौजन्य से सामान्य भाषा में उरी शब्दावली को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ. आप से निवेदन है इस जानकारी को अपने अन्य मित्रों व् सम्बन्धियों तक भी पहुंचाएं ताकि जन गन मन का भला हो सके.

म्युचुअल फंड और SIP में नहीं है कोई अंतर:- अधिकतर लोग म्युचुअल फंड और SIP में भ्रमित हो जाते हैं उन के लिए मैं बता दूँ कि दोनों एक ही है ये म्यूच्यूअल फंड के अंतर्गत ही आते  हैं . किसी भी म्युचुअल मैं हम दो प्रकार से निवेश कर सकते हैं :
लम्सम (Lumbsum):- जैसे आप के पास चार हजार रुपये एक साथ किसी स्कीम में निवेश किये तो वह लम्सम (Lumbsum) और अगर महीने के एक हजार उसी स्कीम में निवेश कर रहें हैं तो वह SIP कहलती है .

म्युचुअल फंड की टर्म
म्युचुअल फंड की टर्म्स समझने से निवेश में आसानी होती है और फाइनेंशियल लक्ष्य के मुताबिक अलग अलग म्युचुअल फंड लेने चाहिए।

यूनिट
हर निवेशक को यूनिट का मतलब जानना जरूरी है और यूनिट से मतलब निवेशक की होल्डिंग से होता है। अगर इक्विटी में निवेश है तो यूनिट की तुलना शेयर से की जा सकती है और अगर डेट या गोल्ड फंड है तो इसे यूनिट कहते हैं। यूनिट दूसरी होल्डिंग से अलग होता है।

फोलियो
म्युचुअल फंड में निवेशक की होल्डिंग फोलियो के हेड में रखी जाती है और हर फोलियो को अलग नंबर दिया जाता है। ये बैंक या दूसरी फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशंस की ओर से दिए जाने वाले कस्टमर आईडेंटिफिकेशन नंबर जैसा होता है। एक फोलियो में कई होल्डिंग हो सकती हैं।

लोडम्युचुअल फंड में पैसा लगाते वक्त निवेशक को जो अलग से पैसा देना होता है वो लोड कहलाता है। अब एंट्री लोड खत्म हो गया है लेकिन अभी भी म्युचुअल फंड खरीदने पर कुछ दूसरे चार्जेंस लगते हैं जैसे एक्जिट लोड अभी भी लगता है और फंड से बाहर आने पर चार्जेज लगते हैं जिसे एक्जिट लोड कहते हैं। एमएफ निवेश से जल्दी बाहर निकलने पर एक्जिट लोड लगता है। एक्जिट लोड आम तौर पर 1-1.5 फीसदी तक होता है और ये फंड बेचते वक्त काट लिया जाता है। एक्जिट लोड को कंटीन्जेंसी डेफर्ड सेल्स चार्ज भी कहा जाता है।

सेल प्राइज
निवेशक किसी भी फंड की जिस कीमत पर यूनिट खरीदता है वो सेल प्राइज कहलाती है और ये फंड के नजरिए से सेल प्राइज है। निवेशक के नजरिए से ये पर्चेज प्राइज है और कोई भी फंड की खरीददारी नेट एसेट वैल्यु पर होती है। नेट एसेट वैल्यु और सेल प्राइज में फर्क नहीं है।

रिपर्चेज प्राइजजिस कीमत पर निवेशक अपना फंड बेचता है उसे रिपर्चेज प्राइज कहा जाता है और फंड के नजरिए से इसे रिपर्चेज प्राइज कहा जाता है। निवेशक के नजरिए से ये सेल प्राइज है। रिपर्चेज प्राइज भी नेट एसेट वैल्यु से ताल्लुक रखती है।

नेट एसेट वैल्यूनेट एसेट वैल्यू को एनएवी कहा जाता है और निवेशक के म्युचुअल फंड की एक यूनिट की कीमत को एनएवी कहा जाता है। ये म्युचुअल फंड के सभी एसेट से कैलकुलेट की जाती है और इसमें पोर्टफोलियो की वैल्यू शामिल होती है। इसमें दूसरे चार्जेस भी शामिल किए जाते हैं जैसे ओपन एंडेड फंड में यूनिट रोजाना बदलती है इसलिए एनएवी को कैलकुलेट करना कठिन होता है। एनएवी रोजाना बदलती है।

म्युचुअल फंड स्कीमम्युचुअल फंड में निवेश को स्कीम कहा जाता है लेकिन निवेशक और सलाहकार स्कीम टर्म का ही इस्तेमाल करते हैं और फंड हाउस अलग अलग म्युचुअल फंड को स्कीम ही कहते हैं। हर स्कीम में अलग अलग प्लान होते हैं मसलन एबीसी इक्विटी फंड को स्कीम कहा जाएगा और स्कीम के चुनाव के बाद उसमें शामिल प्लान चुना जाता है जैसे डिविडेंड पेआउट ऑप्शंस।

डिविडेंड पेआउट ऑप्शंसनाम से जाहिर है निवेशक को इस स्कीम के तहत डिविडेंट मिलेगा और डिविडेंट का समय और रकम की सीमा फंड मैनेजर तय करते हैं। पेआउट ऑप्शंस में निवेशक के बैंक अकाउंट में डिविडेंड जमा कर दिया जाएगा और डिविडेंड इलेक्ट्रोनिक क्रेडिट या चेक से जमा करा दिया जाता है।

डिविडेंड रिइन्वेस्टमेंट ऑप्शनये डिविडेंड ऑप्शन का हिस्सा है और इसमें फंड मैनेजर की ओर से घोषित डिविडेंड का फायदा निवेशक को मिलता है लेकिन इसमें डिविडेंड सीधे निवेशक को नहीं मिलेगा। इस डिविडेंड को वापस फंड में निवेश कर दिया जाता है। रिइन्वेस्टमेंट से निवेशक को अलग से यूनिट मिल जाती हैं और इससे निवेशक को कंपाउडेंड आय होती है।

ग्रोथ ऑप्शनग्रोथ ऑप्शन में निवेशक को पेआउट नहीं मिलता और फंड का मुनाफा फंड में लगा दिया जाता है जिससे इसमें एनएवी बढ़ती रहती है। डिविडेंड ऑप्शन के मुकाबले ग्रोथ ऑप्शन में एनएवी ज्यादा मिलती है और इसमें निवेशक के पास यूनिट बेचने का विकल्प होता है। लंबे वक्त के निवेश में ये फायदेमंद होता है।

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