Saturday 14 October 2017

वायु सेना या सेना कर्मियों के लिए टर्म इन्सुरेंस खरीदने के कारण

          मैंने पिछली पोस्ट में टर्म इन्शुरेंस के संबंध में चर्चा की थी. आशा है आप को जानकारी पसंद आई होगी . अगर आपके मन में कोई प्रश्न है या आपको किसी विषय पर जानकारी हासिल करनी है तो आप कमेन्ट बॉक्स में लिख सकतें हैं .मैं यथासंभव उस के ऊपर जानकारी एकत्रित करके दूंगा. दोस्तों आज  मैं विशेष रूप से भारतीय सेना के तीनों अंगों (सेना ,वायु सेना  व्  नौसेना ) के लिए टर्म इन्सुरेंस लेने की जरुरत के ऊपर जानकारी देने जा रहा हूँ . जिसके बारे में मेरे एक वायुसेना के मित्र ने  जानकारी मांगी है.
          दोस्तों , यों तो भारतीय सेनाएं अपने जवानों तथा अधिकारीयों को एक बड़ा इंश्योरेंस कवर ( 37.5 लाख - जवानों के लिए ) देती है मगर यह सिर्फ तब तक रहता है जब तक आप सेना में सेवा दे रहे हो मगर जैसे ही आप सेना से डिस्चार्ज लेते हैं आप का बीमा समाप्त हो जाता है. हालाँकि सेवा अवधि के पश्चात् भी ढाई लाख का बीमा कवर रहता है . जिसके लिए एकमुश्त प्रीमियम लगभग 18.5 हजार रुपये देने पड़ते हैं या कहूँ की यह राशी रिटायर्मेंट के वक़्त आपके मच्योरिटी धन राशी से कट ली जाती है. यहाँ पर यह बताना भी ज़रूरी होगा की यह बिमा अगले १० वर्षो के लिए ही होता है.  अगर दस वर्ष के बाद व्यक्ति की मृत्यु हो जाये तो मात्र 1.5 लाख रुपये ही नॉमिनी को प्राप्त होंगे.यह एक बहुत ही महँगी और भौंडी सी डील है जिसमे आप लगभग १५० रूपये प्रति माह का प्रीमियम देते हो और मात्र २.५ लाख का कवर पाते हो.मगर क्या करें भाई सरकारी योजनाओं से कितना लाभ मिलेगा ?
         इस लिए मित्रों जरा सोचिये कि क्या १.५ लाख रुपये आज की तारीख में कुछ मायने रखता है. कोई व्यक्ति जब इस  जिम्मेदारी को समझता है कि उसके बाद उसके परिवार को कोई समस्या न हो तो उसे अपनी वार्षिक आय का १० गुना बीमा कवर लेना चाहिए इस से कम से कम उसका परिवार दस वर्षों तक अपना गुजरा कर सकता है . इस लिए टर्म प्लान लेना एक बहुत सस्ता और किफायती सौदा है. मगर कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर नज़र डालनी जरुरी है, जो निम्नवत हैं -
१. कम उम्र में लें टर्म बीमा प्लान -   यदि आप सोच रहें हैं की आप 2० वर्ष की सेवा करने के बाद टर्म प्लान लेंगे तो मैं यहाँ बता दूँ कि उस वक़्त यदि आप पूर्ण स्वस्थ हैं तब भी आप को ज्यादा प्रीमियम देना होगा और मगर सामान्यतः 40वर्ष की उम्र के बाद में हाई बीपी, शुगर , जैसी बिमारिया होने का खतरा बढ़ जाता है जिस कारन प्रीमियम में भी वृध्धि हो जाती है एक मोटे तौर पर यदि 50लाख के कवर के लिए  २०-३० वर्ष की उम्र में 250 रुपये मासिक प्रीमियम देना पड़ेगा मगर ४० वर्ष की उम्र वाले को कम से कम 754/- pm देने पड़ेंगे वह भी जब वह पूरी तरह से फिट है तो क्या बोलते हो .
 बेस्ट प्लान के लिए यहाँ क्लिक करें . 


२. टर्म प्लान लेने से पहले सही प्लान  की तलाश करना बहुत जरुरी.
                               मित्रों आज कल के हाई इन्टरनेट के युग में यदि हमें कुछ भी खरीदना है तो पहले यह बहुत जरुरी है की हम पहले सबसे बेस्ट प्लान के बारे में सर्च कर लें . जिसके लिए आप पालिसीबाजार.कॉम या कवर्फोक्स.कॉम जैसी वेबसाइट्स की मदद ले सकतें हैं . ये आप को सबसे सस्ते प्लान के बारे में भी जानकरी भी देंगे और आप को प्लान को समझाने तथा उसे खरीदवाने में आपकी मदद भी करेंगे और तो और कमाल की बात यह है की इस के लिए ये आपसे कोई एक्स्ट्रा चार्ज भी नहीं लेंगे. और न ही आपको पालिसी महंगी पड़ेगी. अब आप ये मत सोचना कि फिर इनको क्या फायदा होता होगा. यही हमारी सच्ची देशी सोच हम अपना फायदे के बारे में कम दुसरे के फायदे के बारे ज्यादा सोचते हैं .  जैसे आप सोच सकतें हैं की मैं ये ब्लॉग क्यों लिख रहा हूँ इसमें मेरा क्या फायदा. तो दोस्तों परोपकार जैसा भी कुछ होता है. जो आप मुझ पर और अपने दोस्तों पर कर सकते हो, मेरे इस ब्लॉग को शेयर करके या सब्स्क्रिइब करके. 


Friday 13 October 2017

टर्म इंश्‍योरेंस के फायदे ही फायदे

क्‍या है टर्म इंश्‍योरेंस
                टर्म इंश्‍योरेंस को बाजार में उपलब्‍ध सबसे सस्‍ता प्‍लान माना जाता है। टर्म पॉलिसी को प्‍योर प्रोटेक्‍शन प्‍लान भी कहा जाता है और मूलरूप से इसे अप्रत्‍याशित परिस्थितियों से आपको बचाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह उन लोगों के लिए उपयुक्‍त होता है जो सामान्‍य स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति के साथ नहीं हैं और यह तीन प्रकार सम एश्‍योर्ड, लेवल बेनेफि‍ट, इनक्रीजिंग बेनेफि‍ट और डिक्रीजिंग बेनेफि‍ट में आते हैं।

ये कैसे काम करता है
      टर्म इंश्‍योरेंस खरीदने से पहले जो चीज सबसे पहले तय करनी चाहिए वो होती है सम एश्‍योर्ड। यह आपकी लाइफस्‍टाइल और मौजूदा लोन के आधार पर तय होता है। बीमित व्‍यक्ति की असमय मौत पर सम एश्‍योर्ड का उपयोग लोन चुकाने में किया जा सकता है। टर्म इंश्‍योरेंस में मैच्‍योरिटी बेनेफि‍ट नहीं मिलता है। टर्म इंश्‍योरेंस के साथ कुछ राइडर्स खरीदे जा सकते हैं, जो कि मैच्‍योरिटी पर प्रीमियम दे सकते हैं। यदि बीमित व्‍यक्ति मैच्‍योरिटी से पहले ही मर जाता है तो उसके नॉमिनी को सम एश्‍योर्ड की राशि मिलती है।

                   इंश्योरेंस खरीदना हरेक व्यक्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इसलिए अपने लिए सही इंश्योरेंस पॉलिसी चुनना भी काफी अहम है। अपनी जरूरतों के मुताबिक सही इंश्योरेंस पॉलिसी चुनना एक कठिन काम है। बाजार में बहुत सी कंपनियां हैं जो इंश्योरेंस बेचती हैं और हरेक के इंश्योरेंस उत्पाद की अपनी अलग खासियतें हैं। ये काम उस समय और मुश्किल हो जाता है जब आपको रोज इंश्योरेंस कंपनियों की तरफ से कम से एक कॉल आती है जो ये दावा करती है कि उनके उत्पाद सबसे बेहतर हैं।

       जब आप इंश्योरेंस खरीदें तो इसे सिर्फ परिवार के लोगों, इंश्योरेंस एजेंट या दोस्तों के कहने पर ना लें। सिर्फ बाजार में बेहतर प्रदर्शन करने वाले उत्पाद के आधार पर भी इसे ना खरीदें। सिर्फ तब खरीदें जब आप को लगे कि ये आपकी जरूरत के मुताबिक सबसे सही है। पहले विश्लेषण करें कि आपको इंश्योरेंस पॉलिसी से क्या चाहिए। यहां बताए गई हैं वो बातें जो इंश्योरेंस खरीदने से पहले ध्यान में रखनी चाहिए।

1.क्या आप सुरक्षा के लिए इंश्योरेंस खरीद रहे हैं?

2.क्या आप निवेश के लिए इंश्योरेंस खरीद रहे हैं?

3.क्या आप सिर्फ टैक्स बचाने के लिए इंश्योरेंस खरीद रहे हैं?

      बाजार में अलग अलग जरुरतों के मुताबिक अलग अलग उत्पाद मौजूद हैं। इसलिए सिर्फ खरीदने के लिहाज से इंश्योरेंस ना खरीदे। इसे तभी खरीदें जब आपको वास्तव में इसकी जरूरत हो।

बाजार में 2 तरह के इंश्योरेंस उत्पाद मौजूद हैं:

1.जीवन बीमा

2.गैर जीवन बीमा या जनरल इंश्योरेंस

इस लेख में हम लाइफ इंश्योरेंस के बारे में जानेंगे, खासकर टर्म प्लान के बारे में विस्तार से जानेंगे। जिससे आप इसके विभिन्न फीचर्स के बारे में जान सकें।

लाइफ इंश्योरेंस-टर्म प्लान

           मानव जीवन में प्राकृतिक और दुर्घटनावश कारणों से मृत्यु होने का खतरा सामने रहता है। जब किसी व्यक्ति की मौत होती है या वो विकलांग हो जाता है तो परिवार के लिए आय खत्म हो जाती है। परिवार के लिए जीवन बिताना कठिन हो जाता है। अपने परिवार को इस तरह की परिस्थितियों से बचाने के लिए आप सीधे एक लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ले सकते हैं।

               आपका जीवन आपके परिवार वालों के लिए अमूल्य होता है। मुख्य कमाने वाला परिवार को आय मुहैया कराता है इसलिए परिवार के मुख्य आजीविका धारक की जिंदगी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। अगर किसी दुर्घटनावश उसे कुछ हो जाता है तो परिवार को आय मिलनी बंद हो जाती है। अगर परिवार के मुख्य कमाने वाले व्यक्ति की मौत हो जाती है या वो शारीरिक रूप से असमर्थ हो जाता है लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी उसके परिवार को एक निश्चित रकम आय के रूप में उपलब्ध कराती है। लाइफ इंश्योरेंस बहुत से रुप में आते हैं। पहला पूरी तरह सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि इंश्योरेंस के क्षेत्र में बदलते समय के मुताबिक टर्म प्लान में बचत और निवेश को भी शामिल किया गया है। लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रकार यहां बताए गए हैं-

1.टर्म इंश्योरेंस (शुद्द इंश्योरेंस)

2.एनडाओमेंट पॉलिसी (बचत आधारित)

3.मनी बैक पॉलिसी (बचत आधारित)

4.यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) (बचत आधारित, बाजार से जुडी)

आइए टर्म प्लान के बारे में और विस्तार से जानें

         टर्म प्लान इंश्योरेंस पॉलिसी का सबसे शुद्ध स्वरूप है। इसमें आपको बहुत ही कम प्रीमियम में काफी ऊंचा कीमत का कवर मिलता है। इस तरह की पॉलिसी पूरी तरह सुरक्षा के लिहाज से ली जाती हैं। टर्म प्लान में हर साल मामूली प्रीमियम देने के बाद आपको कुछ विशेष सालों के लिए कवर मिलता है। साधारणतया टर्म पॉलिसी 10,15,20,25 और 30 सालों के लिए ली जाती हैं।

डेथ बेनेफिट      अगर पॉलिसी की अवधि के दौरान पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाती है तो कवर की पूरी राशि नॉमिनी को दे दी जाती है।

मैच्योरिटी बैनेफिट           अगर आप पॉलिसी की पूरी अवधि तक जी जाते हैं तो मैच्योरिटी के समय आपको कोई रकम नहीं मिलती है।

टैक्स बेनेफिट     टर्म प्लान के तहत चुकाए गए प्रीमियम आयकर की धारा 80सी के तहत कर मुक्त हैं।

नए फीचर्स
        अब इंश्योरेंस कंपनियां पॉलिसी लेने वाले व्यक्ति के जोखिम प्रोफाइल के आधार पर अलग अलग प्रीमियम चार्ज करती हैं। उदाहरण के लिए आपका जोखिम प्रोफाइल निम्न बातों के आधार पर तय किया जाता है।
1.मैडिकल हिस्ट्री आपकी और आपके परिवार की मैडिकल हिस्ट्री प्रीमियम निर्धारण करने में काफी महत्वपूर्ण भाग रखती है। अगर पॉलिसी लेते वक्त आपको कोई मौजूदा बीमारी है (जो जीवन के लिए खतरा भी हो) तो इंश्योरेंस कंपनियां आपसे अतिरिक्त प्रीमियम वसूल सकती हैं जिसे लोडिंग के नाम से जाना जाता है। जिस व्यक्ति को प्री एक्जिजटिंग डिजीज नहीं है उनसे अतिरिक्त प्रीमियम नहीं लिया जाता है।

2.नॉन मैडिकल हिस्ट्री मैडिकल हिस्ट्री के अलावा आपकी जीवन शैली जैसे धूम्रपान, मदिरापान और व्यव्साय आदि भी प्रीमियम निर्धारित करते समय ध्यान में रखे जाते हैं। अधिकांश तोर पर जो व्यक्ति धूम्रपान करते हैं उनका प्रीमियम धूम्रपान ना करने वाले व्यक्तियों से ज्यादा होता है।

कुछ टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी अतिरिक्त बेनेफिट के साथ आती हैं जिन्हें राइडर कहते हैं:

1.एक्सीडेंटल डेथ बेनेफिट राइडर इस तरह के राइडर में सामान्य प्रीमियम के साथ कुछ अतिरिक्त प्रीमियम वसूला जाता है, और अगर पॉलिसी धारक की एक्सीडेंट में मौत हो जाती है तो उसके परिवार को बढ़े हुए सम एश्योर्ड के रूप में इसका फायदा मिलता है। हालांकि अगर व्यक्ति की मौत किसी और कारण से होती है तो एक्सीडेंटल बेनेफिट के तहत मिलने वाला अतिरिक्त सम एश्योर्ड नहीं मिलता है।

2. प्रीमियम का रिटर्न इस तरह के राइडर में पॉलिसी का प्रीमियम साधारणतः ज्यादा होता है और अगर पॉलिसी धारक पॉलिसी टर्म पूरा होने तक जीवत रहता है तो चुकाए गए प्रीमियम वापस कर दिए जाते हैं।

3. प्रीमियम की समाप्ति इस तरह के राइडर में अगर पॉलिसी होल्डर किसी वजह से पूरी तरह असमर्थ हो जाता है तो उसे आगे के प्रीमियम देने की जरूरत नहीं होती है। भविष्य के सभी प्रीमियम माफ कर दिए जाते हैं। इश्योरेंस कंपनियां इस राइडर के लिए मामूली फीस लेती हैं। ये राइडर शायद आपके इंश्योरेंस का खर्च थोड़ा बढ़ा दे लेकिन अगर किसी वजह से आप असमर्थ हो जाते हैं तो आप बिना पॉलिसी कवर के नहीं रहेंगे।

4. क्रिटिकल इलनेस इस तरह के राइडर में अगर पॉलिसी धारक को कोई बड़ी बीमारी हो जाती है (जो इंश्योरेंस पॉलिसी में कवर हो) तो सम एश्योर्ड के बराबर राशि ग्राहक को दी जाती है। इसमें याद रखने वाली बात ये है कि क्रिटिकल इलनेस होने की सूरत में आपको पूरा पैसा मिल जाता है बाद में कोई पैसा नहीं मिलेगा। इसे मेडिक्लेम पॉलिसी की तरह ना लें, जिसमें हॉस्पिटल का खर्च इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दिया जाता है।
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           ज्यादातर क्रिटिकल इलनेस राइडर में आपके पॉलिसी खरीदने के बाद 90-180 दिन का वेटिंग पीरियड शामिल होता है। इस वेटिंग पीरियड में क्रिटिकल इलनेस के लिए कोई क्लेम नहीं दिया जाता है। आगे चलकर क्रिटिकल इलनेस सामने आने पर भी पॉलिसी होल्डर को कम से कम 30 दिन जीवित रहना चाहिए। 

           याद रखें लाइफ इंश्योरेंस खरीदना सिर्फ पॉलिसी को चुनने और सालाना प्रीमियम अदा करने से कहीं बड़ी जिम्मेदारी है। साथ ही आपको अपने निवेश को इंश्योरेंस से अलग भी रखना चाहिए। म्यूचुअल फंड, बैंक, कॉर्पोरेट एफडी और अन्य साधनों में रखा पैसा आपकी वैल्थ बढाने का काम करेगा जबकि इंश्योरेंस आपके और आपके परिवार की सुरक्षा के लिए जरूरी है। आप पॉलिसी लेने से पहले सभी दस्तावेज ध्यान से पढ़ लें और इसके अलग अलग फीचर्स समझ लें। और अगर आपको कोई जानकारी लेनी है तो जानकारों से ले लें।

Wednesday 11 October 2017

म्युचुअल फंड की शब्दावली (Mutual Fund Terminology)

       प्यारे मित्रों मेरी कोशिश है कि देश में हर शख्स आर्थिक प्रक्रिया से जुड़े और वह खुद के विकास के साथ साथ देश का विकास भी तय करे. जैसा की मेरा यह ब्लॉग आप के लिए विभिन्न प्रकार की बेहतर आर्थिक जानकारियों से जुदा है इस लिए मैंने यह पाया कि हमारे अधिकांश मित्रों को मुचुअल फंड की शब्दावली में बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता है  तो मैंने मनीकंट्रोल.कॉम  के सौजन्य से सामान्य भाषा में उरी शब्दावली को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ. आप से निवेदन है इस जानकारी को अपने अन्य मित्रों व् सम्बन्धियों तक भी पहुंचाएं ताकि जन गन मन का भला हो सके.

म्युचुअल फंड और SIP में नहीं है कोई अंतर:- अधिकतर लोग म्युचुअल फंड और SIP में भ्रमित हो जाते हैं उन के लिए मैं बता दूँ कि दोनों एक ही है ये म्यूच्यूअल फंड के अंतर्गत ही आते  हैं . किसी भी म्युचुअल मैं हम दो प्रकार से निवेश कर सकते हैं :
लम्सम (Lumbsum):- जैसे आप के पास चार हजार रुपये एक साथ किसी स्कीम में निवेश किये तो वह लम्सम (Lumbsum) और अगर महीने के एक हजार उसी स्कीम में निवेश कर रहें हैं तो वह SIP कहलती है .

म्युचुअल फंड की टर्म
म्युचुअल फंड की टर्म्स समझने से निवेश में आसानी होती है और फाइनेंशियल लक्ष्य के मुताबिक अलग अलग म्युचुअल फंड लेने चाहिए।

यूनिट
हर निवेशक को यूनिट का मतलब जानना जरूरी है और यूनिट से मतलब निवेशक की होल्डिंग से होता है। अगर इक्विटी में निवेश है तो यूनिट की तुलना शेयर से की जा सकती है और अगर डेट या गोल्ड फंड है तो इसे यूनिट कहते हैं। यूनिट दूसरी होल्डिंग से अलग होता है।

फोलियो
म्युचुअल फंड में निवेशक की होल्डिंग फोलियो के हेड में रखी जाती है और हर फोलियो को अलग नंबर दिया जाता है। ये बैंक या दूसरी फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशंस की ओर से दिए जाने वाले कस्टमर आईडेंटिफिकेशन नंबर जैसा होता है। एक फोलियो में कई होल्डिंग हो सकती हैं।

लोडम्युचुअल फंड में पैसा लगाते वक्त निवेशक को जो अलग से पैसा देना होता है वो लोड कहलाता है। अब एंट्री लोड खत्म हो गया है लेकिन अभी भी म्युचुअल फंड खरीदने पर कुछ दूसरे चार्जेंस लगते हैं जैसे एक्जिट लोड अभी भी लगता है और फंड से बाहर आने पर चार्जेज लगते हैं जिसे एक्जिट लोड कहते हैं। एमएफ निवेश से जल्दी बाहर निकलने पर एक्जिट लोड लगता है। एक्जिट लोड आम तौर पर 1-1.5 फीसदी तक होता है और ये फंड बेचते वक्त काट लिया जाता है। एक्जिट लोड को कंटीन्जेंसी डेफर्ड सेल्स चार्ज भी कहा जाता है।

सेल प्राइज
निवेशक किसी भी फंड की जिस कीमत पर यूनिट खरीदता है वो सेल प्राइज कहलाती है और ये फंड के नजरिए से सेल प्राइज है। निवेशक के नजरिए से ये पर्चेज प्राइज है और कोई भी फंड की खरीददारी नेट एसेट वैल्यु पर होती है। नेट एसेट वैल्यु और सेल प्राइज में फर्क नहीं है।

रिपर्चेज प्राइजजिस कीमत पर निवेशक अपना फंड बेचता है उसे रिपर्चेज प्राइज कहा जाता है और फंड के नजरिए से इसे रिपर्चेज प्राइज कहा जाता है। निवेशक के नजरिए से ये सेल प्राइज है। रिपर्चेज प्राइज भी नेट एसेट वैल्यु से ताल्लुक रखती है।

नेट एसेट वैल्यूनेट एसेट वैल्यू को एनएवी कहा जाता है और निवेशक के म्युचुअल फंड की एक यूनिट की कीमत को एनएवी कहा जाता है। ये म्युचुअल फंड के सभी एसेट से कैलकुलेट की जाती है और इसमें पोर्टफोलियो की वैल्यू शामिल होती है। इसमें दूसरे चार्जेस भी शामिल किए जाते हैं जैसे ओपन एंडेड फंड में यूनिट रोजाना बदलती है इसलिए एनएवी को कैलकुलेट करना कठिन होता है। एनएवी रोजाना बदलती है।

म्युचुअल फंड स्कीमम्युचुअल फंड में निवेश को स्कीम कहा जाता है लेकिन निवेशक और सलाहकार स्कीम टर्म का ही इस्तेमाल करते हैं और फंड हाउस अलग अलग म्युचुअल फंड को स्कीम ही कहते हैं। हर स्कीम में अलग अलग प्लान होते हैं मसलन एबीसी इक्विटी फंड को स्कीम कहा जाएगा और स्कीम के चुनाव के बाद उसमें शामिल प्लान चुना जाता है जैसे डिविडेंड पेआउट ऑप्शंस।

डिविडेंड पेआउट ऑप्शंसनाम से जाहिर है निवेशक को इस स्कीम के तहत डिविडेंट मिलेगा और डिविडेंट का समय और रकम की सीमा फंड मैनेजर तय करते हैं। पेआउट ऑप्शंस में निवेशक के बैंक अकाउंट में डिविडेंड जमा कर दिया जाएगा और डिविडेंड इलेक्ट्रोनिक क्रेडिट या चेक से जमा करा दिया जाता है।

डिविडेंड रिइन्वेस्टमेंट ऑप्शनये डिविडेंड ऑप्शन का हिस्सा है और इसमें फंड मैनेजर की ओर से घोषित डिविडेंड का फायदा निवेशक को मिलता है लेकिन इसमें डिविडेंड सीधे निवेशक को नहीं मिलेगा। इस डिविडेंड को वापस फंड में निवेश कर दिया जाता है। रिइन्वेस्टमेंट से निवेशक को अलग से यूनिट मिल जाती हैं और इससे निवेशक को कंपाउडेंड आय होती है।

ग्रोथ ऑप्शनग्रोथ ऑप्शन में निवेशक को पेआउट नहीं मिलता और फंड का मुनाफा फंड में लगा दिया जाता है जिससे इसमें एनएवी बढ़ती रहती है। डिविडेंड ऑप्शन के मुकाबले ग्रोथ ऑप्शन में एनएवी ज्यादा मिलती है और इसमें निवेशक के पास यूनिट बेचने का विकल्प होता है। लंबे वक्त के निवेश में ये फायदेमंद होता है।

Sunday 8 October 2017

म्‍यूचुअल फंड्स को लेकर भ्रांतियां

          शेयर बाजार को निवेश के लिए सबसे फायदेमंद लेकिन जोखिम भरे टूल के रूप में जाना जाता है। साधारण निवेशक के लिए शेयर बाजार के उतार चढ़ाव और कंपनियों के टेक्निकल चार्ट्स का सही-सही अंदाज लगा पाना बेहद मुश्किल होता है। ऐसे में म्‍यूचुअल फंड्स मार्केट में निवेश करने का सबसे समझदारी भरा और आसान जरिया माना जाता है। यहां बड़े फंड मैनेजर्स आपके निवेश को मुनाफेमंद बनाने का काम करते हैं। लेकिन इसे बावजूद बहुत से लोगों के बीच म्‍यूचुअल फंड्स को लेकर भ्रांतियां है। जिसके चलते आसान और फायदे के बावजूद लोग इन टूल्‍स में निवेश से बचते हैं। आपकी इन्‍हीं भ्रातियों को दूर करने की कोशिश कर रही है। जिससे आप भी इन फंड्स में सुकून भरा निवेश कर सकें। 


म्यूचुअल फंड्स में छोटी राशि भी कर सकते हैं निवेश
लोगों का मानना है कि जब तक आपके पास बड़ी पूंजी नहीं है, तब तक आप म्‍यूचुअल फंड मार्केट का रुख नहीं कर सकते। लेकिन वास्तव में म्यूचुअल फंड्स में आप 1000 रुपए से भी निवेश शुरु कर सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक निवेश करने के लिए सबसे अच्छा समय तब होता है जब आप शुरुआत करें। छोटी रकम से भी आप बाजार में निवेश कर सकते हैं। जितना जल्दी आप निवेश करना शुरु करेंगे उतनी ही जल्दी आप अपना कॉर्पस बना पाएंगे।

म्यूचुअल फंड्स में छोटी अवधि के लिए भी कर सकते हैं निवेश
            लोगों का मानना है कि म्‍यूचुअल फंड में सिर्फ लंबे समय के लिए ही निवेश कर सकते हैं। लेकिन वास्तव में म्यूचुअल फंड्स छोटे (शॉर्ट टर्म) और लंबे (लॉन्ग टर्म) समय दोनों के लिए होते हैं। शॉर्ट टर्म पांच साल से कम के लिए होते हैं और निवेशक डेट म्यूचुअल फंड्स में से चयन कर सकते हैं जो कि बैंक की एफडी से बेहतर होती है। लॉन्ग टर्म के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड्स सबसे अच्छे विकल्प होते हैं।
सभी म्यूचुअल फंड्स पर नहीं लगता टैक्‍स
          लोग टैक्‍स सेविंग के लिए दूसरे इंस्‍ट्रूमेंट का प्रयोग करते हैं लेकिन वास्तव में म्यूचुअल फंड्स में निवेश टैक्स सेविंग्स लाभ मुहैया कराता है, लेकिन सिर्फ इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) में जिसमें इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 सी के तहत कर कटौती के योग्य होते हैं। इक्विटी म्यूचुअल फंड्स से एक साल बाद किए गए कैपिटल गेन पर टैकस छूट मिलती है और डेट फंड्स के कैपिटल गेन पर तीन साल बाद टैक्स लगता है जो कि इंडेक्सेशन लाभ के कारण काफी कम दर पर लगता है।

म्यूचुअल फंड्स का मतलब सिर्फ इक्विटी नहीं
           वास्तव में म्यूचुअल फंड्स का मतलब केवल स्टॉक्स या इक्विटी मार्केट में निवेश करना नहीं होता है। म्यूचुअल फंड्स मुख्य एसेट क्लास के आधार पर क्लासिफाइड होते हैं। जैसे कि इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में इक्विटिज में निवेश होता है, डेट म्यूचुअल फंड्स में डेट या फिक्स्ड इनकम में निवेश होता है और मनी मार्केट फंड्स में निवेश के विकल्पों में जैसे कि ट्रैजरी बिल्स और रिपर्चेस एग्रीमेंट्स।

निवेश से पहले जानें क्‍या है एनएवी
        म्‍युचुअल फंड की गणना उसकी एनएवी से होती है। वास्तव में फंड की नेट एसेट वैल्यु (एनएवी) बेमतलब होता है क्योंकि ये निवेश फंड की मार्केट वैल्यु को दर्शाता है न कि बाजार के दामों को। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए आपके पास दो विकल्प है- 1000 यूनिट फंड ए की जिसकी एनएवी 10 रुपए है और 100 यूनिट्स फंड बी की जिसकी एनएवी 100 रुपए है। आपने फंड ए की 1000 यूनिट खरीदने का फैसला लिया। एक साल के बाद क्योंकि दोनों फंड्स का एक जैसा पोर्टफोलियो है तो दोनों 20 फीसदी की दर से बढ़ेंगे। फंड ए की एनएवी 12 रुपए हो जाएगी और फंड बी की 120 रुपए। आपकी निवेश वैल्यु 12000 रुपए तक बढ़ जाएगी और रिटर्न दोनों का एक सा होगा।
बच्‍चों के लिए भी हैं म्‍यूचुअल फंड्स
      वास्तव में किसी भी अन्य फंड स्कीम की तरह रिटर्न्स बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। बच्चों पर केंद्रित फंड में किसी भी अन्य म्यूचुअल फंड की तरह ही जोखिम होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी अन्य स्कीम में और बच्चों की स्कीम में रिटर्न की गारंटी एक जैसी होती है। इसमें कोई फर्क नहीं है। निवेश करने से पहले लंबे समय के लिए निवेश, प्रर्दशन, जोखिम और रिटर्न का विश्लेष्ण जरूर करें।


Wednesday 4 October 2017

शानदार आईडिया है SIP यानि Systematic Investment Plan

       म्यूचुअल फण्ड Mutual Fund में निवेश करता रहता है. Gold यानि सोने जैसी कमोडिटी में भी SIP द्वारा निवेश किया जाता है. SIP द्वारा निवेश करने से अनुशासित तरीके से निवेश करना आसान हो जाता है तथा निवेश का जोखिम भी कम हो जाता है.
        आपने प्यासे कौवे की कहानी तो सुनी होगी. जिसके घड़े में पानी कम था और उसने छोटे छोटे पत्थर डाल कर घड़ा भर दिया और पानी पी लिया.
               SIP यानि Systematic Investment Plan हिंदी में कहेंगे व्यवस्थित निवेश योजना. मगर मैं इसे क्रमबद्ध निवेश योजना कहना चाहूँगा. SIP जिसे सिप भी कहा जाता है में एक बराबर समय के अंतराल में, एक बराबर राशि एक ही मद में निवेश की जाती है. मान लीजिये की एक निवेशक के पास पचास हजार रुपये है निवेश करने के लिए तो वह इन्हें एक ही दिन निवेश ना करके SIP में पांच हजार प्रति माह के हिसाब से दस माह तक निवेश करते हैं.
             कोई भी निवेशक SIP के द्वारा शेयर बाजार Share Market, म्यूचुअल फण्ड Mutual Fund अथवा Gold ETF में निवेश कर सकता हैं. निवेश का अंतराल प्रति दिन, प्रति सप्ताह अथवा प्रति माह रखा जा सकता है. सैलरी पेशा लोगों के लिये यह निवेश का एक आसान उपाय है. हर माह अपनी सैलरी से कुछ बचत करके नियमित और अनुशासित ढंग से बड़ा निवेश किया जा सकता है. किसी भी म्युचुअल फण्ड में एडवांस चैक दे कर अथवा ऑनलाइन निर्देश दे कर सिप शुरू किया जा सकता है. SIP रु 500 प्रति माह जैसी छोटी राशि से भी करवाया जा सकता है.
SIP निवेश का एक बेहतरीन तरिका है.  
यहाँ हम सिप निवेश के फायदे बता रहे हैं:
१.  छोटा निवेश- छोटी राशि निवेश के लिए निकालना आसान होता है. लम्बे समय तक छोटी छोटी राशि का निवेश आपको बड़े रिटर्न दे सकता है. 
२.रिस्क में कमी - SIP का सबसे बड़ा फायदा यही है. मान लीजिये किसी निवेशक के पास पचास हजार रुपये शेयर मार्किट में निवेश के लिए हैं. उसने इन्हें बाजार में एक साथ लगा दिया. अगले दिन बाजार ऊपर जाएगा अथवा नीचे कोई नहीं जानता. यही निवेश यदि थोड़े थोड़े अंतराल में बाँट कर किया जाए तो रिस्क में कमी आ जाती है.
३.निवेश में आसानी - सिप में निवेश ऑनलाइन निर्देश दे कर किया जा सकता है. निश्चित तारीख को म्यूचुअल फण्ड आपके खाते से निशचित राशि लेकर आपके चुने हुए प्लान में निवेश कर देता है.
आपको एक किस्सा सुनाते हैं.
          रमेश और राजेश दो दोस्त हैं. दोनों ने अपनी अपनी पत्नियों को वादा किया कि अगली शादी की सालगिरह पर सोने का हार ले कर देंगे. रमेश पूरे साल इंतज़ार करते रहे कि जब सोना सस्ता होगा तब लेंगे. कई बार सोना सस्ता भी हुआ मगर रमेश को लगाता कि सोना अभी और सस्ता होगा. रमेश हार नहीं ले पाए और साल गिरह पर जो कीमत थी उसी पर हार लेनी पड़ा.
          राजेश ने पहले महीने से ही गोल्ड ETF में SIP निवेश शुरू कर दिया. जब जब सोने की कीमत कम हुई राजेश का निवेश हो जाता था. आप अंदाज लगा सकते हैं की हार की कीमत किसने ज्यादा ज्यादा दी होगी. अंत में आपने प्यासे कौवे की कहानी तो सुनी होगी. जिसके घड़े में पानी कम था और उसने छोटे छोटे पत्थर डाल कर घड़ा भर दिया और पानी पी लिया. SIP मुख्य रूप से शेयर मार्किट Share Market में छोटी छोटी राशि को नियमित रूप से अनुशाशन के साथ म्यूचुअल फण्ड Mutual Fund द्वारा निवेश करने का आसान तरीका है. आशा है कि आपको समझ आया होगा कि सिप क्या है और कैसे काम करता है.


Sunday 1 October 2017

म्यूचुअल फंड के प्रकार

 म्यूचुअल फंड के प्रकार

आगे भी हम आपको यह समझाने के लिये अपनी बात बहुत साधारण तरीके से रख रहे हैं, ताकि आप म्यूचुअल फंड को अच्छी तरह समझ सकें।

1. इक्विटी फंड

      इक्विटी फंड वो स्कीम होती है, जिसमें कंपनी निवेशकों से इकठ्ठा हुए धन का ज्यादातर भाग इक्विटी शेयर में निवेश कर देती है। ये हाई रिस्क स्कीम होती हैं, जिनमें निवेशकों को घाटा भी हो सकता है। ऐसा इसलिये क्योंकि इसमें ज्यादातर पैसा शेयर बाजार में फंसा रहता है। इस प्रकार की स्कीम ऐसे निवेशकों के लिये अच्छी रहती हैं, जो रिस्क लेने से डरते नहीं हैं।

2. डेब्ट फंड

         डेब्ट फंड स्कीम के अंतर्गत इकठ्ठा हुआ ज्यादातर कॉरपोरेट ऋण स्कीम, सरकारी स्कीम, आदि में निवेश किया जाता है। इस प्रकार का म्यूचुअल फंड उन निवेशकों के लिये उपयुक्त रहता है, जो रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। इसमें पैसा वापस होने की लगभग गारंटी रहती है।

3. बैलेंस फंड

बैलेंस फंड में कंपनी निवेशकों से प्राप्त धन को इक्विटी और डेब्ट दोनों में निवेश करती है। इसका मकसद भी अंत में भारी मात्रा में धन कमाना होता है। जाहिर है कंपनी बाजार के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए शेयर मार्केट में पैसा डालती है, ताकि ज्यादा से ज्यादा धन कमा कर निवेशकों को उनका रिटर्न दिया जा सके।

4. मनी मार्केट म्यूचुअल फंड

मनी मार्केट म्यूचुअल फंड को लिक्व‍िड फंड भी कहते हैं। उसमें कंपनी निवेशकों से लिया हुआ पैसा सुरक्ष‍ित व शॉर्ट-टर्म स्कीम में लगाती हैं, जैसे सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट, ट्रेज़री एंड कमर्श‍ियाल पेपर, आदि। ऐसे निवेश कम सीमा समय के होते हैं।

5 गिल्ट फंड

गिल्ट फंड को सबसे ज्यादा सुरक्ष‍ित निवेश माना जाता है। इसमें कंपनी निवेशकों से लिया हुआ सारा पैसा सरकारी योजनाओं में लगा देती हैं। चूंकि उसमें सरकार का बैकअप रहता है, इसलिये पैसा डूबने का खतरा नहीं के समान होता है। इसीलिये यह सबसे सुरक्ष‍ित म्यूचुअल फंड है।

म्यूचुअल फंड: क्या और कैसे -समझें

                  निवेशकों की एक बड़ी संख्या के द्वारा जमा पैसा एक म्यूचुअल फंड का निर्माण करता है जिसे एक फण्ड में डाल दिया जाता है। फण्ड मेनेजर इस पैसे को विभिन्न वित्तीय साधनों में निवेश करने के लिए अपने निवेश प्रबंधन कौशल का उपयोग करता है.  म्यूचुअल फंड कई तरह से निवेश करता है जिससे उसका रिस्क और रिटर्न निर्धारित होता है.
             जब बहुत से निवेशक मिल कर एक फण्ड में निवेश करते हैं तो फण्ड को बराबर बराबर हिस्सों में बाँट दिया जाता है जिसे इकाई या यूनिट Unit कहते हैं.
उदाहरण के लिये मान लीजिये कि कुछ दोस्त मिल कर एक जमीन का टुकडा खरीदना चाहते हैं। सौ वर्ग गज के जमीन के टुकडे की कीमत एक लाख रुपये है। अब यदि इस फंड को दस रु कि युनिट्स में बांटेंगे तो 10,000 यूनिट बनेंगे. निवेशक जितने चाहे उतने यूनिट अपनी निवेश क्षमता के अनुसार खरीद सकते हैं. यदि आपके पास केवल एक हज़ार रुपये निवेश के लिए हैं तो आप सौ यूनिट खरीद सकते हैं. उसी अनुपात में आप भी उस निवेश (जमीन के) मालिक हो गए.
अब मान लीजिये की इस एक लाख के निवेश की कीमत बढ़ कर एक महीने के बाद रुपये 1,20,000 हो गयी. अब इस निवेश के अनुसार यूनिट की कीमत निकाली जायेगी तो दस रुपये वाला यूनिट अब बारह रुपये का हो चुका है. जिस निवेशक ने एक हजार रुपये में सौ यूनिट खरीदे थे, बारह रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से अब उसका निवेश (100X12) रुपये 1200 हो चुका है.
एक निवेशक के रूप में आप द्वारा निवेश की गई राशि पर आधारित है कि आप कितनी यूनिट्स के मालिक हैं। इसलिए, एक निवेशक भी एक यूनिट धारक के रूप में जाना जा सकता है। इसमें से अर्जित अन्य आय के साथ-साथ निवेश के मूल्य में वृद्धि को लागू व्यय, भार और करों को घटाने के बाद यूनिटों की संख्या के साथ अनुपात में निवेशकों / यूनिट धारकों को बांट दिया जाता है।
इससे आप देख सकते हैं की एक निवेशक जो कि बड़ा निवेश नहीं कर पाता, उस के पास छोटे छोटे यूनिट्स में निवेश करने की सुविधा है.

इसके अलावा Mutual Fund म्यूचुअल फंड का सबसे बड़ा फायदा यह है की एक निवेशक जिसे बाज़ार की अधिक जानकारी नहीं है वह अपना निवेश विशेषज्ञों के हाथ में छोड़ देता है. कहाँ, कैसे और कब निवेश करना है यह विशेषज्ञों निर्धारित करते हैं.
म्यूचुअल फंड कई तरीके से निवेश करते है. सबसे प्रमुख बांड तथा शेयर मार्केट्स हैं. इसके अलावा गोल्ड अथवा अन्य किसी माल (Commodities) में निवेश कर सकते है. 

अपने बेहतर भविष्‍य के लिए कर सकते हैं डायरेक्‍ट इंवेस्‍टमेंट:म्युचुअल फंड्स

                अपने बेहतर भविष्‍य के लिए हम सभी को बैंक एफडी, Mutual Funds, गोल्‍ड, शेयर और बॉण्‍ड आदि में निवेश करने की सलाह दी जाती है। लेकिन आज की व्‍यस्‍त जीवनशैली में अपने भविष्‍य के लिए भी कुछ समय निकालकर बैंक या किसी वित्‍तीय संस्‍था के ऑफिस जाना बेहद मुश्किल काम है, ऊपर से यदि एजेंट की मदद ली जाए तो उसका कमीशन हमारे रिटर्न में सेंध लगा देता है। लेकिन इंटरनेट के जमाने में आपको न तो समय खराब करने की जरूरत है और न हीं एजेंट को भारी-भरकम कमीशन देने की, आप ऑनलाइन शॉपिंग की तरह Mutual Funds , बॉण्‍ड और फिक्‍स डिपॉजिट में भी निवेश कर सकते हैं। कई म्‍यूचुअल फंड कंपनियां ऑनलाइन निवेश के लिए डायरेक्‍ट प्‍लान प्‍लांस पेश कर रही हैं, वहीं कुछ बड़े फंड मैनेजर्स भी आपको एक ही स्‍थान पर सभी निवेश विकल्‍प ऑनलाइन मुहैया करवा रहे हैं। आज हम आपको बताने जा रहें है इन्‍हीं तरीकों के बारे में जिनके साथ आप ऑनलाइन निवेश कर सकते हैं।
इस तरह कर सकते हैं डायरेक्‍ट इंवेस्‍टमेंट(Direct investment)
       ऑनलाइन तरीकों से होने वाले निवेश को आम बोलचाल की भाषा में डायरेक्‍ट इंवेस्‍टमेंट कहा जाता है, इसमें किसी ब्रोकर या एजेंट की मदद नहीं ली जाती। आप सीधे मनचाहे Mutual Funds में निवेश कर सकते हैं। इसके दो तरीके हैं, आप सीधे संबंधित म्‍यूचुअल फंड कंपनी जैसे रिलायंस या कोटक जैसी कंपनियों की वेबसाइट पर जाकर म्‍यूचुअल फंड एसआईपी खरीद सकते हैं। यहां आपको पर्सनल डिटेल्‍स के साथ नो योर कस्‍टमर(केवाईसी) और ऑनलाइन ट्रांजेक्‍शन एवं एसआईपी के लिए बैंक डिटेल भरनी होगी। दूसरी ओर आप जिप-सिप, फंड्स इंडिया, कोटक या आईसीआईसीआई जैसे पोर्टल पर रजिस्‍टर करवा सकते हैं, यहां सभी प्रकार के निवेश एक ही स्‍थान पर करने की सुविधा मिलती है।
ऑनलाइन निवेश के लिए केवाईसी जरूरी(Know Your Costumer)
       भारत में निवेश के लिए आपकी केवाईसी से जुड़ी प्रक्रिया पूरी होनी बेहद जरूरी है। जब आप एजेंट या ब्रोकर के माध्‍यम से निवेश करते हैं तो वह आपसे मैनुअली सभी डिटेल भरवा कर कंपनी में जमा करवाता है। लेकिन ऑनलाइन में आपको खुद ही पूरी डिटेल भरकर सबमिट करनी होती है। यदि आपने पहले निवेश किया है और केवाइसी पूरी है, तो ऑनलाइन निवेश के वक्‍त इसकी जरूरत नहीं पड़ती, कंपनी की वेबसाइट पर ऑटोमैटिक आपकी पूरी जानकारी फ्लैश कर जाती है। लेकिन यदि आपका केवाईसी नहीं है तो आपको संबंधित फॉर्म का प्रिंटआउट लेकर उसमें डिटेल भरकर पोस्‍ट के माध्‍यम से कंपनी में भेजनी होंगी। CAMS की ऑफिस में जाकर भी डायरेक्ट आप केवाईसी का फॉर्म भर सकतें हैं. उस के बाद केम्स में ही आप अधिकांश म्युचुअल फंड्स खरीद सकतें हैं.

खुद खरीद और बेच सकते हैं फंड्स
      खुद कैसे  और कौन सा म्युचुअल फंड्स खरीदें ? ये सबसे बड़ा प्रश्न है.
तो इसका सिम्पल उत्तर है :
             MONEYCONTROL APP
इसे आप गूगल एप स्टोर से डाउनलोड कर सकतें हैं.  इस एप से आप लेफ्ट साइड के आइकॉन से म्युचुअल फंड्स के विकल्प से टॉप परफोर्मिंग या  टॉप रेंक्ड स्कीम में से  सही फंड्स चुन सकतें हैं . यहाँ आप को क्रिसिल रेटिंग या स्टार रेटिंग भी उपलब्ध है जिस से उस फंड का रिकोर्ड पता चलता है . सबसे ज्यादा क्रिसिल रेटिंग तथा सबसे बढ़िया रिटर्न्स वाले फंड्स में इन्वेस्ट करना सबसे बेहतर होगा . यदि आप अपने पैसे को विभिन्न प्रकार फंड्स में लागतें हैं तो आप को बेहतर और कम रिस्क के साथ रिटर्न्स मिलने की सम्भावना रहती है. एक बार जब आपका केवाईसी कम्प्लीट हो जायेगा तब आप प्रत्येक म्युतुअल फंड को सीधा उसकी वेबसाइट से खरीद सकतें हैं .  ये बहुत ही आसन है.


 
डायरेक्‍ट इंवेस्‍टमेंट के ये हैं फायदे:-
          चूंकि यहां निवेश के लिए न तो आपको अलग से समय निकालना पड़ता है और न हीं ऑफिसों के चक्‍कर काटने पड़ते हैं। ऐसे में यहां निवेश करना दूसरे सभी तरीकों के मुकाबले काफी आसान है। आप दिन या रात, अपनी सुविधा के अनुसार निवेश कर सकते हैं। चूंकि निवेश की पूरी चाबी आपके हाथ में होती है, इसलिए यहां आप नियमित रूप से निवेश भी कर पाते हैं। साथ ही आपकी फायनेंशियल समझ भी बढ़ती है। दूसरी ओर एजेंट कमीशन के झंझट से मुक्‍त होने के कारण आपको यहां फायदा भी अधिक होता है।

Sunday 17 September 2017

लैपटॉप खरीदते वक्त किन बातों का रखें ध्यान

                 बात एंटरटेनमेंट की हो या ऑफिस के काम की लैपटॉप आपका हमेशा साथ देता है. यह स्मार्टफोन से काफी अलग है और इसे खरीदते वक्त आपको काफी सोच समझ कर फैसला करना चाहिए.अगर आप लैपटॉप खरीदने की तैयारी में हैं, तो इन बातों को जरूर ध्यान में रखें. क्योंकि अगर सिर्फ दुकानदार की सुनेंगे तो बेवकूफ बन सकते हैं और लैपटॉप ले कर पछताने के अलावा फिर कोई ऑप्शन नहीं होगा. 
बजट : जाहिर है सबसे पहले अपना बजट तय करेंगे.  
साइज :गर अपने साथ हर जगह लैपटॉप ले जाना है तो 13 से 14 इंच वाले लैपटॉप आपके लिए बेस्ट हैं. घर पर ही रखना है तो बड़े स्क्रीन वाला खरीद सकते हैं. 
ऑपरेटिंग सिस्टम: एप्पल के फैन हैं ? मैक ओएस पसंद है ? अगर हां तो आपके लिए लिमिटेड ऑप्शन्स हैं. अगर विंडोज बेस्ड लैपटॉप चाहते हैं आपके पास काफी ऑप्शन्स हैं. 
 हार्डवेयर स्पेसिफिकेशन: हेवी यूज है और बजट भी ठीक ठाक है तो स्पेसिफिकेशन्स के साथ कोई समझौता न करें. कम से कम 4GB रैम वाला लैपटॉप लें, इससे कम नहीं. 
 हार्ड डिस्क: 1टीबी हार्ड डिस्क होनी चाहिए और प्रोसेसर स्पीड भी तेज हो. अगर आपको हार्ड डिस्क में SSD का ऑप्शन है तो उसे ही खरीदे क्योंकि वो काफी फास्ट होगा. हालांकि इसके लिए आपको ज्यादा पैसे देने होंगे. प्रोसेसर: बाजार में कई प्रोसेसर हैं, लेकिन आप Intel Core i3,i5 और i7 में से ही चुनें तो बेहतर होगा. कुछ लैपटॉप्स के प्रोसेसर स्पीड कंपेयर कर लें तो और भी अच्छा होगा. 
 डिस्प्ले: कई तरह के डिस्प्ले होते हैं, अगर आप लैपटॉप पर फिल्में ज्यादा देखते हैं तो फुल एचडी रिजोलुशन (1920X1080p) वाला डिस्प्ले चुनें. साधारण यूज के लिए एचडी स्क्रीन (1366 x 768) हैं. बैट्री: आम तौर पर लोग लैपटॉप खरीदते समय बैट्री पर ध्यान नहीं देते. लेकिन आप ऐसा न करें कम से कम 6 घंटे बैट्री बैकअप वाला ही लैपटॉप खरीदने की कोशिश करें, वर्ना चार्जिंग सॉकेट ढूढते रह जाएंगे. 
 ब्रांड: किसी भी लैपटॉप का ब्रांड उसकी विश्वसनीयता तय करता है. ऐसी कंपनी का लैपटॉप खरीदें जिसकी सर्विस आपके इलाके में हो और सपोर्ट के मामले में भी नंबर-1 हो. पिछले कुछ साल से पहले नंबर पर एप्पल है. इसके बाद एचपी, लेनोवो और सैंमसंग जैसे ब्रांड्स हैं.

वायु सेना या सेना कर्मियों के लिए टर्म इन्सुरेंस खरीदने के कारण

          मैंने पिछली पोस्ट में टर्म इन्शुरेंस के संबंध में चर्चा की थी. आशा है आप को जानकारी पसंद आई होगी . अगर आपके मन में कोई प्रश्न ह...